रांची |
कोरोना के कारण पिछले दो वर्षों के दौरान आवासीय सेंटरों के ज्यादातर समय तक बंद रहने के कारण सरकारी बाबुओं के “बहते हुए श्रोतों” पर विराम सा लग गया था। पूर्णमासी के चांद (प्रेमचंद लिखित नमक का दारोगा फेम) के दर्शन को मजबूर बाबुओं ने खेल की आधारभूत संरचनाओं व प्रतिभा खोज प्रतियोगिता नामक “बहते हुए श्रोतों” को ढूंढ निकाला है। सरकार के आवासीय सेंटरों में एथलेटिक्स, फुटबॉल, बैडमिंटन व वॉलीबॉल के प्रशिक्षण के लिए भले ही एक लाख रुपये मूल्य की मूलभूत ज़रूरी खेल सामग्री न हो लेकिन “ट्रायल” के नाम पर एक-एक जिले में लाखों रुपये उड़ाने की योजना को मूर्त रूप दे दिया गया है। निदेशालय से निकले फरमान के अनुसार जिला स्तर पर होनेवाली प्रतिभा खोज प्रतियोगिता पर 48 लाख रुपये का भारी-भरकम खर्च किया जा रहा है। इन 48 लाख रुपयों से बैटरी व स्पेसिफिक गेम टेस्ट के बाद 24 जिलों के 480 बालक व बालिका का चयन होगा। फिर इन 960 बच्चों का एक टेस्ट राज्य स्तर पर भी होना है, जाहिर है इसका बजट भी लाखों में होगा। पता हो कि ये प्रतिभा खोज प्रतियोगिता फुटबॉल व एथलेटिक्स के लगभग दो दर्जन सेंटरों व वॉलीबॉल-बैडमिंटन के एक-एक सेंटरों की रिक्तियों को भरने के लिए है। आर्चरी व हॉकी के सेंटरों की रिक्तियां भरने के लिए निदेशालय लाखों रुपये (शायद एक करोड़ के आसपास) पहले ही बहा चुका है।


15+ बच्चों को ही वैक्सीनेशन फिर 10-12 साल के बच्चों का ट्रायल क्यों ?
निदेशक के हस्ताक्षर से जो पत्र निर्गत हुआ है उसके अनुसार 10 से 12 वर्ष के बालक-बालिका का चयन किया जाना है। कोविड महामारी के दौरान जहां 15+ बच्चों का ही वैक्सीनेशन हो रहा है वहां 10-12 साल के बच्चों को प्रतिभा खोज के नाम पर एक्सपोज़ क्यों किया जा रहा है ? सरकार के तय मानकों के अनुसार 12 से 14 वर्ष तक के बच्चे ही आवासीय सेंटर में प्रशिक्षण के लिए इंट्री ले सकते हैं, फिर 10 से 12 साल के बच्चों का ट्रायल ? समझ से परे है लेकिन… !
पूर्व के अनुभव से भी सीखने को तैयार नहीं निदेशालय
सभी जिलों से आए 20-20 बालक-बालिका खिलाड़ियों में से चयन के बाद आवासीय सेंटरों में रिक्ति के बाद चयनित खिलाड़ियों का एक पूल तैयार होगा। जिसे आवासीय सेंटरों में भेजा जाएगा। अगर पाकुड़ में फुटबॉल के लिए चयनित किसी खिलाड़ी को सिमडेगा भेजा जाएगा तो वो कितने दिन सेंटर में टिक पायेगा। पूर्व का अनुभव तो यही बताता है कि ऐसी स्थितियों में खिलाड़ी किट लेने के लालच में सेंटर तक जाते हैं और किट मिलने के बाद दोबारा नहीं लौटते। फिर भी… !
निदेशालय में राज्य भर में वॉलीबॉल का एक ही कोच कार्यरत, फिर 24 जिलों में कैसे होगा स्पेसिफिक ट्रायल ?
प्रतिभा खोज चयन प्रतियोगिता के लिए जो नियम व शर्तें जारी किए गए हैं, उनके अनुसार सभी खेलों के लिए स्पेसिफिक ट्रायल भी होना है वो भी सभी 24 जिलों में 21 से 24 फरवरी के बीच। निदेशालय में वॉलीबॉल का एक ही कोच कार्यरत है वो चार दिनों में 24 जिलों का ट्रायल कैसे कराएगा ? फिर क्या हॉकी/एथलेटिक्स/आर्चरी का कोच ही बैडमिंटन के खिलाड़ियों का चयन करेगा ? 5 जिले ऐसे हैं जहां निदेशालय का एक भी कोच नहीं, वहां कैसे होगा ट्रायल ? जहां सेंटर हैं वहां भी 2 लाख जहां सेंटर नहीं उस जिले को भी 2 लाख का बजट। “मार्च लूट” में मदान्ध अधिकारियों ने जो आदेश निकाला है उसमें कई त्रुटियां व विरोधाभाष हैं लेकिन टके सेर भाजी टके सेर खाजा के पैमाने पर चलनेवालों को इससे क्या मतलब।
किस खेल के लिए कितने बच्चों का चयन करना है, किसी को पता नहीं ?
जिला स्तर पर 20 बालक व 20 बालिका का चयन करना है। किस खेल में कितने बालक-बालिका का चयन करना है, इसके संदर्भ में लिखते वक्त निदेशालय के अधिकारियों की बौद्धिक कलम की स्याही सूख गई। अब ऐसी परिस्थिति में उचित मार्गदर्शन के लिए जिला के खेल अधिकारी निदेशालय के बागड़ बिल्लों के गले में घंटी बांधने की जुगत में जुटने का साहस जुटा रहे हैं।
कई सेंटरों की रिक्तियां भरी जा चुकी हैं, फिर भी होगा ट्रायल !
प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकार के कई आवासीय सेंटरों में रिक्तियों को भरा जा चुका है। तो क्या पहले से चयनित बच्चों को हटाकर ट्रायल से आये नए बच्चों को रखा जाएगा ? जिला व मुख्यालय के बीच ऐसी संवादहीनता क्यों ?