रांची |
झारखंड सरकार और सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL) की संयुक्त इकाई झारखंड राज्य खेल प्रोत्साहन समिति (JSSPS) अब मेगा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के निजी सुरक्षाकर्मियों का हक मारने की तैयारी में जुट गई है। JSSPS ने 2 जून को मेगा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में 135 सुरक्षाकर्मियों की सेवा लेने के लिए टेंडर निकाला। टेंडर की NIT में श्रम विभाग के आदेशानुसार सभी सुरक्षाकर्मियों के लिए बोनस देना अनिवार्य किया गया था। इसके निमित्त NIT में विशेष तौर पर दो क्लॉज जोड़े गए थे
General Conditions of Contract
के
Section 2
का
Clause 26. No other claim over and above minimum wages and service charge (which is inclusive of Minimum Service Charge in percentage comprising of PF@12%, EDLI @0.5%, Administrative
Charges @0.5%, ESI@3.25% or any other statutory payments including Bonus and commission of service provider as well as all any other obligations like Dress, Dress washing charges etc.) on whatever account shall be entertained by the JSSPS. The Contractor will ensure that workers engaged by him must receive their entitled wages on time.
और
Annexture E(ii)
के तहत
In addition
क्लॉज का
3. Bonus is mandatory as per Payment of Bonus Act 1965 (as amended vide payment of bonus Amendment Act 2015), concerned month’s wage as fixed by DGR or State Govt or Rs. 7000/- whichever is higher is payable to the security guard/supervisor w.e.f 01 April 2014
मतलब साफ है कि निजी कंपनी द्वारा सभी सुरक्षाकर्मियों को बोनस दिया जाना है लेकिन JSSPS की टेंडर कमिटी को ये मंजूर नहीं कि सुरक्षाकर्मियों को बोनस मिले।
NIT की शर्तों के अनुसार सुरक्षाकर्मियों को अनिवार्य रूप से सरकार के नियमों के तहत बोनस दिया जाना है। लेकिन JSSPS की टेंडर कमिटी अब खुद द्वारा बनाए गए NIT के शर्तों से परे जाकर सुरक्षाकर्मियों का हक मारने की तैयारी में जुट गई है। पुख्ता सूत्रों से जानकारी मिली है कि टेंडर कमिटी के सदस्यों की “ARM तिकड़ी” चहेती कंपनियों से मिलनेवाले “कट बोनस” के चक्कर में सुरक्षाकर्मियों का “बोनस” खत्म करने पर तुली हैं।
क्योंकि NIT के
General Instructions to Bidders
के
Section 1
का
Clause 10. कहता है कि
Bid Price:
(a) The Bidder shall quote for all work i.e. mentioned in Scope of Work, failing which the bid shall be considered nonresponsive.
मतलब NIT में जो भी वर्क मेंशन है वेंडर उन सभी को जोड़ते हुए अपनी फाइनेशियल बीड जमा करेगा। अगर ऐसा नहीं है तो टेंडर कमिटी उस वेंडर के दावे को नहीं मानेगी।
फिर भी टेंडर कमिटी सिर्फ और सिर्फ वैसे वेंडरों के नाम पर विचार कर रही है जिन्होंने अपने फाइनेंशियल बीड में बोनस की रकम को शामिल ही नहीं किया है। साफ है कि टेंडर कमिटी 135 सुरक्षाकर्मियों का हक मारने की तैयारी में है। अगर ऐसे वेंडरों में से किसी को काम एलॉट कर दिया गया तो क्या 135 सुरक्षाकर्मियों को बोनस का पैसा वेंडर अपने घर से देगा क्या ? अगर ऐसा है तो वैसे ही वेंडर को ये काम आजीवन एलॉट किया जाए।




वित्तीय बीड खुले 5 दिन हो गए लेकिन डाटा अपलोड नहीं हुआ
टेंडर कमिटी ने वित्तीय बीड 25 जुलाई को ही खोल दिया था लेकिन पांच दिन गुजरने के बाद भी रेट अब तक वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया। पर्दे के पीछे टेंडर कमिटी की “ARM तिकड़ी” वेंडरों से फरियाने में जुटी है। तिकड़ी ने चार वेंडरों को गुड बुक में रखा है। पिछले 5 दिनों से ये चार वेंडर कमांडो इंडस्ट्रील सिक्युरिटी फोर्स, शिवा प्रोटेक्शन फोर्स प्राइवेट लिमिटेड, गोस्वामी सर्विसेज और क्रिएटिव इंटरनेशनल के कर्ता धर्ताओं JSSPS कार्यालय में डेरा डाले हुए हैं। इसके अलावा प्रोजेक्ट भवन, एफपीपी बिल्डिंग, दरभंगा हाउस और कचहरी चौक स्थित “पावर सेंटर” पर भी लगातार हाजिरी लगाई जा रही है।
टेंडर कमिटी में ये “गुणी” लोग हैं शामिल
गिरीश कुमार राठौर (अध्यक्ष), ललित पासवान (अंडर सेक्रेटरी, पर्यटन, राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर) अनिल कुमार (टेंडर इंचार्ज ऑनलाइन अपलोड), ले.क. विक्रांत कुमार, मुकेश नाहटा और राखी गुप्ता
चहेते को नहीं मिला काम तो टेंडर रद्द करने की रणनीति पर काम कर रही है “ARM तिकड़ी”
“ARM तिकड़ी” की रणनीति साफ है कि 135 सुरक्षाकर्मियों को बोनस नहीं मिले। इसके बावजूद अगर ऐसा होता हुआ नहीं दिखे तो टेंडर कैंसल कर दिया जाए और फिर से NIT में सुधार कर अपने चहेते वेंडर को काम एलॉट करने की दिशा में बढ़ा जाए।
इससे पहले भी चहेते वेंडर को काम दिलाने में नाकाम रहे थे टेंडर कमिटी के सदस्य, एक बार पहले रद्द हो चुका है टेंडर


मेगा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में सुरक्षाकर्मियों का टेंडर मई माह में एक बार रद्द हो चुका है। 11 अप्रैल को जारी टेंडर में ऐसी शर्तें जोड़ी गई थीं कि मनपसंद कंपनी ही L1 हो जाए और उसे काम मिल जाए। JSSPS के वरीय अधिकारियों के संज्ञान में ये बात आने के बाद टेंडर 3 मई को कैंसल कर दिया गया था।