रांची |
झारखण्ड में खेल प्रशासन से जुड़े झारखण्ड के अधिकारियों की प्राथमिकताएं तय है
पहला – पद पर येन केन प्रकारेण बने रहना
और
दूसरा – टेंडर पर पूरी लगन से मेहनत करना.
इन्हीं दोनों कार्यों में व्यस्त रहने के कारण U – 14 राष्ट्रीय सब जूनियर रग्बी प्रतियोगिता में उपविजेता होकर लौटी झारखण्ड की टीम को खेल विभाग व खेल निदेशालय के अधिकारियों की ओर से प्रोत्साहन के दो शब्द तक मयस्सर नहीं हो पाए। सम्मान की बात तो बेमानी ही है ! दूसरी ओर खेल में फिसड्डी समझे जानेवाले बिहार के मुख्यमंत्री ने इसी प्रतियोगिता में भाग लेकर विजेता बने खिलाड़ियों का स्वागत स्वयं किया और नकद पुरस्कार से भी सम्मानित किया। यही नहीं बड़े गर्व से ट्विटर पर खिलाड़ियों के साथ अपनी तस्वीर भी ट्वीट की और झारखंड में… भगवान ही मालिक है।
अधिकारी मुख्यमंत्री के आंख-कान होते हैं और जब अधिकारियों के आंखों पर पदलोलुपता का सूरमा और कानों पर टेंडर से मिलनेवाले सिक्कों की खनक सुनाती इयरफोन लगी हो तो खिलाड़ियों की उपलब्धियों की क्या बिसात ! पिछले सप्ताह खेल निदेशक के पद पर कब्जे के लिए दो-दो IAS ऐसे भीड़ रहे थे मानों ‘अमृतपान’ करना हो। जब रग्बी की टीम लौटी तो निदेशालय के अधिकारी विधायकों के प्रदर्शनी मैच के लिए वेंडरों के साथ टेंडर को निपटाने में जुटे हुए थे। खिलाड़ियों का सम्मान भले न हो पाया हो लेकिन टेंडर फाइनल होने की खुशी अधिकारियों के चेहरे पर देखी जा सकती है।
दूसरी ओर सरकार व अधिकारियों के व्यवहार से आहत झारखण्ड रग्बी संघ के उपाध्यक्ष के के सिंह ने बिहार CM नीतीश कुमार के ट्वीट को रीट्वीट किया है और लिखा है
“राष्ट्रीय सब जूनियर प्रतियोगिता (U 14) झारखण्ड बालक टीम फाइनल के गोल्डन टाइम में बिहार से हारकर उपविजेता बनी।
मुख्य मंत्री को छोड़िए, राज्य के खेल मंत्री को भी टीम के प्रशंसा की नहीं पड़ी। सिर्फ जर्सी बांटने से खेल नहीं बढ़ता।”


ऐसे ही समय के लिए कहा गया है
… भाजी … खाजा … नगरी … राजा !?