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राज्य के सभी 19 जिला खेल पदाधिकारियों को एक वर्ष पूरे करने पर बधाई व शुभकामनाएं। कोरोना काल में पिछले वर्ष आज के ही दिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हाथों 23 जिला खेल पदाधिकारियों (DSO) ने नियुक्ति पत्र लिया था। बगैर किसी प्रशिक्षण के ही सभी DSO ने लॉटरी द्वारा आवंटित जिले में योगदान दिया और खट्टे-मीठे अनुभव के साथ कोरोना काल में एक वर्ष गुजर गया। इस एक वर्ष में कई DSO खेल के प्रति गंभीरता दिखाते हुए अमिट छाप छोड़ने में कामयाब हुए लेकिन कुछ DSO का मन खेल से नहीं भरा इसलिए उन्होंने उपायुक्त की परिक्रमा कर अन्य विभागों का प्रभार लेने में ज्यादा रुचि दिखाई। सबकुछ पब्लिक प्लेटफार्म पर है। ऐसे DSO जिनकी प्राथमिकताओं की सूची में खेल नहीं है उन्हें “पुनर्मूषको भव:” व “रंगा सियार” की कहानी का वाचन व मनन एक-दो बार जरूर करना चाहिए शायद आंखें समय रहते खुल जाएं। इस बीच पर्यटन विभाग ने भी सभी जिलों में DSO को ही नोडल पदाधिकारी बना दिया। पहले ये प्रभार योजना पदाधिकारी के जिम्मे हुआ करता था।
बगैर प्रशिक्षण के ही मैदान में कूद पड़े DSO
किसी भी गैजेटेड अधिकारी के लिए प्रशिक्षण व प्रशिक्षण में उत्तीर्ण होने की प्रक्रिया तय है, पता नहीं क्यों इस प्रक्रिया का पालन DSO के लिए नहीं किया जा रहा है ? संभव है कि कोरोना काल के कारण ऐसा हो रहा हो लेकिन प्रशिक्षण न होने का परिणाम-दुष्परिणाम तो इन DSO को ही भुगतना होगा। उन्हें ध्यान रखने की ज़रूरत है कि वरीय अधिकारी पद लॉलीपाप दिखाकर करियर की लंगोट न खींच लें। हां ये ज़रूर है कि खेल निदेशालय की ओर से सभी DSO को दो दिन तक चले कार्यक्रम के दौरान 8-10 घंटे का प्रशिक्षण कराया गया था। प्रशिक्षण का शेड्यूल बताता है कि ये प्रशिक्षण कम प्रवचन ज्यादा था।
मुख्यमंत्री आमंत्रण कप फुटबॉल प्रतियोगिता का सफल आयोजन DSO के समक्ष बड़ी चुनौती
पंचायत स्तर से लेकर जिला व ज़ोन स्तर तक आयोजित होनेवाली मुख्यमंत्री आमंत्रण कप फुटबॉल प्रतियोगिता का सफल आयोजन DSO के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। प्रतियोगिता के आयोजन की घोषणा कभी भी हो सकती है। इस प्रतियोगिता में पंचायत, प्रखंड, जिला व ज़ोन स्तर पर फुटबॉल प्रतियोगिता का आयोजन होता है। नियुक्ति के बाद DSO के लिए इस प्रतियोगिता का सफल आयोजन अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा।
ज्यादातर DSO व विभागीय प्रशिक्षकों के बीच 36 का आंकड़ा
ज्यादातर जिलों में DSO व निदेशालय-साझा द्वारा नियुक्त प्रशिक्षकों के बीच तनातनी खुलेआम जारी है। खुद को ज्यादा ज्ञानी साबित करने में विभागीय चुगलियों का सिलसिला पत्रों के रूप में सामने आ रहा है। तनातनी का दुष्परिणाम ये हो रहा है कि वेतन, छात्रवृत्ति, भोजन व अन्य मद के खर्चों का भुगतान ससमय नहीं हो पा रहा है। आवासीय सेंटर के लिए जिम खरीदने के लिए भी ज्यादातर जिलों में टेंडर एक से ज्यादा बार निकालना पड़ा।
बिन मांगे सलाह…
सरकार को चाहिए जिले के किसी भी अधिकारी को प्रभार देने की बजाय अगल-बगल के सबसे निकटवर्ती जिले के DSO को ही प्रभार दे दिया जाए। इससे ये तय हो जाएगा कि खेल की समझ रखनेवाले अफसर ही खेल का संचालन कर रहे होंगे। आपको पता हो कि 2013 से 2016 तक झारखण्ड के सभी 24 जिलों में खेल का प्रभार एकमात्र अफसर के जिम्मे था और उन्होंने अभी के 19 अफसरों से कमतर परिणाम नहीं दिया था।