रांची
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झारखंड खेल प्राधिकरण (SAJHA, राज्य सरकार द्वारा संपोषित संस्था) में कार्यरत 1980 मास्को ओलंपिक में हॉकी के स्वर्ण पदक विजेता सिल्वानुस डुंगडुंग और लॉस एंजेल्स 1984 ओलंपिक में हॉकी टीम का हिस्सा रहे मनोहर टोपनो के साथ राज्य सरकार दोयम व घटिया दर्जे का व्यवहार कर रही है। SAJHA में कार्यरत दोनों ओलंपियनों को छोड़ सभी कर्मियों का मानदेय अगस्त माह में लगभग दोगुना कर दिया गया लेकिन राज्य व देश का नाम रौशन करनेवाले दोनों ओलंपियनों का मानदेय एक धेला भी नहीं बढ़ाया गया है। स्थिति ये है कि जिंदगी भर खेल की “दलाली” करनेवाले कर्मचारी आज 55 से 65 हजार रुपए प्रतिमाह का मानदेय उठा रहे हैं और मैदान पर अपना खून पसीना बहा राज्य व देश का मान बढ़ाने वाले ओलंपियनों को कंप्यूटर ऑपरेटर से भी कम मानदेय पर ड्यूटी बजानी पड़ रही है। ऐसा अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत से सिर्फ और सिर्फ ओलंपियनों को नीचा दिखाने के लिए किया गया है।
sportsjharkhand.com को जब इस मामले की जानकारी लगभग दो माह पहले मिली तो वर्तमान निदेशक सुशांत गौरव को 15 सितंबर को व्हाट्सएप के जरिए SAJHA में हो रहे इस इंजस्टिज को दूर करने का विनम्र आग्रह भी किया गया था, उन्होंने संदेश देखा भी लेकिन लगता है विभिन्न टेंडर प्रक्रियाओं में व्यस्त होने के कारण वे इस गंभीर विषय पर ध्यान नहीं दे पाए।
सम्मान देने के लिए प्रशिक्षक से SAJHA में को ऑर्डिनेटर बनाए गए थे ओलंपियन
सिल्वानुस डुंगडुंग रांची के बरियातू हॉकी आवासीय सेंटर और मनोहर टोपनो खूंटी के एस एस हाई स्कूल आवासीय सेंटर में हॉकी प्रशिक्षक की भूमिका निभा रहे थे। लगभग एक दशक तक प्रशिक्षण देने के बाद दोनों ओलंपियनों को उम्र व अनुभव के आधार पर SAJHA में सम्मान स्वरूप को ऑर्डिनेटर का “ऑर्नामेंटटल पद” दिया गया। ओलंपियनों को क्या पता था की कालांतर में यही सम्मान अपमान का घूंट पीने पर विवश कर देगा।
क्या तत्कालीन निदेशक से टकराव के कारण नहीं बढ़ा मानदेय ?
एस्ट्रो टर्फ स्थित हॉकी सेंटर फॉर एक्सीलेंस के मुख्य कोच सह प्रशासक द्रोणाचार्य अवॉर्डी नरेंद्र सिंह सैनी के इस्तीफे के बाद अप्रैल माह में तत्कालीन निदेशक सरोजनी लकड़ा ने मनोहर टोपनो को तत्कालीन तौर पर सेंटर में मुख्य प्रशिक्षक सह प्रशासक बनने का अनुरोध किया था। मनोहर टोपनो ने वर्तमान मानदेय पर इस जिम्मेवारी को निभाने में असमर्थता जताई थी। क्योंकि जिस पद की जिम्मेवारी संभालने को कहा जा रहा था उसका मानदेय और जो मानदेय मनोहर टोपनो को मिल रहा था उसमें तीन गुना का अंतर था। मनोहर टोपनो के असमर्थता जताने से निदेशक जाहिर तौर पर नाराज हूई और ये नाराजगी मानदेय बढ़ानेवाले निर्णय में परिलक्षित भी हुईं।
सात साल से 33 हजार के मानदेय पर काम करने को विवश हैं ओलंपियन
सिल्वानुस डुंगडुंग और मनोहर टोपनो पिछले 7 वर्षों से 33 हजार रुपए के मानदेय पर काम करने को विवश हैं। 2016 में जब मानदेय बढ़ाया गया था तब पूर्व खेल मंत्री के आदेश पर दोनों ओलंपियनों को रोजाना ऑफिस आने और हाजिरी बनाने से भी मुक्ति प्रदान प्रदान की गई थी। दोनों ओलंपियनों को सिर्फ और सिर्फ प्रमुख बैठकों और कार्यक्रमों के दौरान ही बुलाया जाता था।
खेल निदेशालय व SAJHA में पूर्व चैंपियन खिलाड़ियों से दुर्व्यवहार का पुराना इतिहास रहा है
निदेशालय में विशेष तौर पर उप निदेशक के पद पर रेलवे से प्रतिनियुक्ति पर आईं भारतीय हॉकी टीम की पूर्व कप्तान व कोच सुमराय टेटे ने भी अधिकारियों व कर्मियों के दुर्व्यवहार से नाराज़ होकर टाटा बाई बाई कह दिया था। अब परिस्थितियां ऐसी बनाई जा रही हैं कि दोनों ओलंपियन भी संस्था को छोड़ दें। किसी भी काम से विभाग में अगर पूर्व या वर्तमान खिलाड़ियों का जाना होता है तो उनके साथ भी अधिकारियों व कर्मचारियों का व्यवहार दुत्कारने सरीखा होता है। हां पदक जीतकर लौटने पर “अखबार में नाम” के अपवाद को छोड़कर।
ओलंपियन का पक्ष
इस विषय पर मनोहर टोपनो का पक्ष लेने का प्रयास किया गया लेकिन उन्होंने इस विषय पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।
सिल्वानुस डुंगडुंग जी लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से दो चार हैं इसलिए उनसे संपर्क नहीं किया गया।
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