रांची |
विधायिका व कार्यपालिका की अक्षम्य अकर्मण्यता का दंश झारखंड का खेल परिवार वर्षों से झेलता आ रहा है। खेल व खिलाड़ियों के हित में फैसले कब और कैसे लेने चाहिए ये सिखलाया है मणिपुर के CM एन वीरेन सिंह ने। (वीरेन सिंह स्वयं फुटबॉल के अच्छे खिलाड़ी रहे हैं और उन्होंने मणिपुर की ओर से दो बार संतोष ट्रॉफी भी खेला है।) वेटलिफ्टर मीराबाई चानू के ओलंपिक में रजत पदक जीतने के मात्र 36 घंटे के अंदर सरकार में एएसपी खेल का एक विशेष पद सृजित करते हुए चानू को नौकरी देने की घोषणा की। चानू किस ऑफिस में बैठेंगी, उनका स्टाफ कौन होगा ये सब औपचारिकताएं चानू के टोक्यो से मणिपुर पहुंचने से पहले ही पूरी कर ली गई हैं। ऑफिस में नेम प्लेट तक लगा दिया गया लेकिन दूसरी ओर झारखंड की विधायिका व कार्यपालिका की नापाक जुगलबंदी के कारण एशियाई खेलों में रजत पदक जीतने वाली मधुमिता कुमारी को 36 माह बाद भी राज्य सरकार की नौकरी का इंतज़ार है। सच्चाई सुन कर भृकुटि तन रही हो तो ज्यादा परेशान न हों। पिछले 9 माह से sportsjharkhand.com लगातार खिलाड़ियों की नियुक्ति का मुद्दा उठा रहा है लेकिन परिजनों के लिए अस्पताल खोलने-चलाने में व्यस्त और फल विक्रेताओं-मज़दूरों को पकड़ सरकार बचाने में जुटे अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। अधिकारियों की चमड़ी इतनी मोटी हो गई है कि उन्हें माननीय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा खिलाड़ियों की सीधी नियुक्ति के संदर्भ में की गई सार्वजनिक घोषणाओं तक की भी फिक्र नहीं। CM ने 18 अक्टूबर 2020 को कहा था कि एक माह में नौकरी मिल जाएगी लेकिन घोषणा आज तक पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाई। अधिकारियों के टेबल पर सिर्फ नियुक्ति की फ़ाइल आती-जाती है और बेशर्म शर्म है कि आती ही जाती नहीं ! कुछ तो शर्म करो बेशर्मों !
29 दिसंबर को 1 और 17 मार्च को 27 खिलाड़ियों को मिली नियुक्ति, मधुमिता का इंतज़ार बरकरार
18 अक्टूबर को CM हेमंत सोरेन ने घोषणा की कि एक माह में खिलाड़ियों को नौकरी मिल जाएगी। अधिकारियों ने कर्मठता का परिचय देते हुए घोषणा के 2 माह 11 दिन बाद 29 दिसंबर को एक खिलाड़ी को नौकरी दे औपचारिकता पूरी कर दी। मीडिया में लगातार खबर छपने के बाद 17 मार्च को 27 अन्य खिलाड़ियों को नौकरी दी गयी। लेकिन मधुमिता समेत 12 अन्य खिलाड़ियों को अब भी नौकरी का इंतज़ार है। खिलाड़ियों ने खेल मंत्री से लेकर मुख्य सचिव, खेल सचिव, खेल निदेशक सब से गुहार लगाई लेकिन इंतज़ार लंबा होने के अलावा कुछ भी नहीं हो पाया।
सरकारी टेबलों पर धूल फांक रही है नियुक्ति की फ़ाइल
मधुमिता ने अगस्त 2018 में भारत के लिए एशियाई खेलों में टीम स्पर्धा का रजत पदक जीता था। इसके बाद अक्टूबर 2019 में राज्य सरकार ने सीधी नियुक्ति करने का निर्णय लिया तो रेलवे में कार्यरत मधुमिता ने आवेदन दिया। आवेदन पर अधिकारी कुंडली मारकर बैठे हुए हैं और कोई कुछ बताने को तैयार नहीं है। कैबिनेट ने नियुक्ति में व्याप्त विषमताओं को दूर करते हुए अपनी सहमति दे दी लेकिन लेकिन अधिकारी कागजों पर खिलाड़ियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने से नहीं चूक रहे। दूसरे राज्यों के खिलाड़ियों के लिए ट्वीट कर रहे मंत्री, राजनेताओं व अधिकारियों की अपने राज्यों के खिलाड़ियों के प्रति चुप्पी खिलाड़ियों के दर्द को और असहनीय बना रही है।
मधुमिता समेत इन 12 खिलाड़ियों को है नौकरी का इंतज़ार
मधुमिता कुमारी, रितेश आनंद, भाग्यवती चानू (तीनों सब-इंस्पेक्टर)
विप्लव कुमार झा, दिनेश कुमार, कृष्णा खलखो, एम विजय कुमार, लखन हांसदा, फरजाना खान, लवली चौबे, सरिता तिर्की व रीना कुमारी (सभी आरक्षी)
नियम विरुद्ध पैसे देने की घोषणा का स्वागत लेकिन नियम सम्मत काम तो पूर्ण हो
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ओलंपिक से ठीक पहले सरकार के नियमों से परे जाकर कुछ खिलाड़ियों को नकद पुरस्कार देने की घोषणा की। खिलाड़ियों के हित में नियमों से परे जाकर की गई घोषणा का भी स्वागत है मुख्यमंत्री जी लेकिन कई माह से लटकी पड़ी खिलाड़ियों की नियुक्ति का नियमसम्मत कार्य पर भी सकारात्मक पहल सुनिश्चित हो।
ये मात्र नौकरी नहीं साहब खिलाड़ियों के वर्षों तक मैदान पर बहाए गए खून-पसीने का सम्मान है और सम्मान का ये तरीका सम्मानजनक तो नहीं कहा जा सकता। विधायिका व कार्यपालिका को मणिपुर से कुछ सीखना चाहिए।
डॉ रामाशंकर सिंह
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