रांची |
दिल्ली में शुक्रवार व शनिवार 14-15 जुलाई को स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SGFI) की होनेवाली वार्षिक आम सभा (AGM) को लेकर खेल निदेशालय और शिक्षा विभाग एक बार फिर आमने-सामने आ गया है। खेल निदेशालय ने SGFI की AGM में भाग लेने के लिए रामगढ़ और जामताड़ा के जिला खेल पदाधिकारी (DSO) क्रमश: रूपा रानी तिर्की और संतोष कुमार को अधिकृत किया है। वहीं शिक्षा विभाग की ओर से सचिव के रवि कुमार और धीरसेन सोरेंग SGFI की AGM में भाग लेंगे। पता हो कि मई माह में SGFI की U 19 टीम भेजे जाने को लेकर भी दोनों विभाग आमने सामने आ गए थे तब मुख्य सचिव के हस्तक्षेप के बाद SGFI के प्रशासी विभाग की जिम्मेवारी शिक्षा विभाग को सौंपी गई थी। तत्पश्चात शिक्षा विभाग ने ही झारखंड SGFI की टीम भेजी थी। इसके बाद सहमति बनी थी कि स्कूली खेल आयोजन यथा SGFI, सुब्रतो कप फुटबॉल और नेहरू कप हॉकी प्रतियोगिता का आयोजन का प्रशासी विभाग शिक्षा विभाग ही होगा। अब स्थिति ये है कि SGFI की बैठक में भाग लेने के लिए झारखंड से दो की बजाय चार प्रतिनिधि पहुंच चुके हैं वो भी आम लोगों की गाढ़ी कमाई के पैसे से। अहम की लड़ाई में सरकारी पैसों का दुरुपयोग सही नहीं।
26 मई के निर्णय से खेल निदेशालय ने लिया यू टर्न
26 मई को खेल निदेशालय में पत्रकार वार्ता कर खेल निदेशक सरोजनी लकड़ा ने घोषणा कि थी की अब SGFI से खेल निदेशालय खुद को अलग करता है। SGFI से जुड़ी सारी गतिविधियां अब शिक्षा विभाग ही करेगा और यह निर्णय खेल संघों के प्रतिनिधियों से विस्तृत चर्चा के सर्वसम्मति से लिया गया है। फिर इस फैसले के 40 दिन बाद ही खेल निदेशालय अपने स्टैंड से क्यों पलट गया ?
सुब्रतो कप फुटबॉल प्रतियोगिता को लेकर भी आमने सामने हैं दोनों विभाग
सुब्रतो कप प्रतियोगिता में बगैर अनुमति के एक दूसरे के विभागीय कर्मचारियों व अधिकारियों को निर्देश जारी करने को लेकर शिक्षा विभाग और खेल निदेशालय आमने सामने है। जहां एक ओर खेल निदेशालय विज्ञापन जारी कर सुब्रतो कप फुटबॉल प्रतियोगिता के आयोजन में शिक्षा विभाग के जूनियर अफसरों की सेवा लेने का आदेश/निर्देश जारी कर रहा है वहीं शिक्षा विभाग ने अपने मातहत कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों को खेलो झारखंड प्रतियोगिता के आयोजन को सफलतापूर्वक कराने का निर्देश जारी कर दिया है।
इस विवाद पर खेल निदेशक, DSO और झारखंड शिक्षा परियोजना के धीरसेन सोरेंग से पक्ष जानने की कोशिश की गई पर किसी ने पक्ष रखना उचित नहीं समझा।