निदेशालय के खिलाड़ियों को मिला ‘फूड स्टाइपेंड’ का पैसा लेकिन साझा के खिलाड़ियों के हाथ खाली

निदेशालय के खिलाड़ियों को मिला 'फूड स्टाइपेंड' का पैसा लेकिन साझा के खिलाड़ियों के हाथ खाली

 

कोरोना के कारण मार्च 2020 से ही राज्य के सभी आवासीय खेल प्रशिक्षण सेंटर में आवासन व प्रशिक्षण का काम बंद हैं। मोरहाबादी स्थित खेल निदेशालय सह साझा कार्यालय में साल भर बाद बंद गेट के अंदर एसी कमरों में बैठे-बैठे अधिकारियों को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई कि एक साल से हमारे खिलाड़ियों को पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है। इसलिए सेंटर में प्रशिक्षण के दौरान खिलाड़ियों के खान-पान पर खर्च होनेवाली राशि (फूड स्टाइपेंड) खिलाड़ियों के एकाउंट में ट्रांसफर कर दी जाए, जिससे की उन्हें पौष्टिक आहार मिल सके। निदेशालय ने फैसला ले लिया और 13 जिलों के जिला खेल पदाधिकारियों के माध्यम से 600 खिलाड़ियों के अकाउंट में पैसा ट्रांसफर कर दिया गया।

लेकिन यहीं खेला हो गया… राज्य में दो तरह के आवासीय खेल प्रशिक्षण केन्द्र पहला निदेशालय द्वारा संचालित और दूसरा साझा द्वारा संचालित। अधिकारियों ने निदेशालय के खिलाड़ियों को तो भुगतान का आदेश दे दिया लेकिन साझा के 260 खिलाड़ियों के लिए भुगतान का आदेश देना भूल गए। साथी खिलाड़ियों के अकाउंट में फूड स्टाइपेंड की रकम आ गयी और साझा के खिलाड़ियों के हाथ अब तक खाली हैं। साझा सेंटर के खिलाड़ी अब यही आस में हैं कि एसी कमरों में बैठ कुर्सी तोड़ रहे अधिकारियों को जल्द ही दोबारा दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो जाए और उन्हें भी फूड स्टाइपेंड की राशि मिल जाए।

 

ऑफिस एक… अधिकारी एक… लेकिन एक ही विषय पर फैसले अनेक !

 

खेल निदेशालय के निदेशक जिशान कमर
साझा के कार्यकारी निदेशक जिशान कमर
खेल निदेशक व साझा के कार्यकारी निदेशक का चैंबर एक
निदेशालय व साझा का ऑफिस भी एक ही अहाते में
फिर भी खिलाड़ियों को फूड स्टाइपेंड देने के मसले पर फैसले अनेक कैसे हो गए ? निदेशक महोदय से इस विषय पर जब हमने जानना चाहा तो कोई जवाब नहीं मिल पाया है। निदेशक महोदय से जवाब नहीं मिलने के बाद हमने विभागीय सचिव से भी इस विषय पर आधिकारिक पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन वहां से भी उत्तर अप्राप्त है।

 

 

3 जिले के खिलाड़ियों को 330 दिन तो 10 जिले के खिलाड़ियों को 85 दिन का फूड स्टाइपेंड

निदेशालय के खिलाड़ियों को भी फूड स्टाइपेंड देने के मामले में दो अलग-अलग निर्देश जारी किए गए। गोड्डा, हजारीबाग व गिरिडीह को OSP (अदर सब प्लान) के मार्फत 330 दिनों की राशि का एकमुश्त भुगतान किया गया। जबकि रांची, खूंटी, सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा, लातेहार, सरायकेला-खरसावां, पश्चिम सिंहभूम, साहेेबगंज व दुमका के 21 सेंटर के 500 खिलाड़ियों को जनजातिय क्षेत्र उपयोजना के तहत 85 दिनों की रकम अकाउंट में ट्रांसफर करने का आदेश दिया गया। तीन जिलों के खिलाड़ियों के अकाउंट में प्रति खिलाड़ी 175 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 330 दिन के लिए 57,750 रुपये जबकि 10 जिलों के खिलाड़ियों के अकाउंट में 175 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 85 दिन के लिए 14,875 रुपये का भुगतान किया गया।

 

साझा के इन सेंटरों के खिलाड़ियों को नहीं मिला फूड स्टाइपेंड

होटवार स्थित तीरंदाजी सेंटर फाॅर एक्सीलेंस: 5 बालक, 16 बालिका

होटवार स्थित बैडमिंटन आवासीय सेंटर: 13 बालक

बरियातू स्थित हाॅकी सेंटर: 25 बालिका

मोरहाबादी स्थित हाॅकी सेंटर फाॅर एक्सीलेंस: 30 बालक, 30 बालिका

सिल्ली स्थित तीरंदाजी आवासीय सेंटर: 16 बालक, 16 बालिका

बोकारो स्थित एथलेटिक्स आवासीय सेंटर: 10 बालक

चाईबासा स्थित तीरंदाजी आवासीय सेंटर: 16 बालक, 16 बालिका

दुमका स्थित तीरंदाजी आवासीय सेंटर: 14 बालक, 3 बालिका

गुमला स्थित फुटबाॅल आवासीय सेंटर: 25 बालक

सिमडेगा स्थित हाॅकी आवासीय सेंटर: 25 बालिका

 

 

क्लब में कोच दिखे तो किया था शो-काॅज, अब कितने अधिकारियों का होगा शो-काॅज ?

छह-आठ माह पहले की बात है साझा का एक कोच छुट्टी के दिन क्लब में दिख गया था तो उसे शो-काॅज कर दिया गया था। हिदायत दी गयी थी कि अब आप क्लब की ओर दिखाई न दें.. अन्यथा ! अब साझा के खिलाड़ियों के हितों की रक्षा नहीं करने के आरोप में टेबल तोड़ रहे कौन-कौन से अधिकारियों को शो-काॅज किया जाएगा और उनकी अकर्मण्यता के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी ?

 


 

खिलाड़ियों को पैसे तो मिले, पैसों के सदुपयोग का मार्गदर्शन नहीं मिला

खिलाड़ियों को एकमुश्त पैसे तो मिल गए लेकिन क्या खाना है कितना खाना है, क्या नहीं खाना है। इन सभी सवालों से जुड़ा कोई मार्गदर्शन अब तक खिलाड़ियों को नहीं मिला है। ऐसे में एकमुश्त मिले पैसों के सदुपयोग की बजाय दुरूपयोेग से भी इनकार नहीं किया जा सकता। एक कोच ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि पिछले वर्ष ऑनलाइन क्लास से दूर भागनेवाले प्रशिक्षु भी अब रोजाना फेसबुक-व्हाट्सएप्प पर नजर आने लगे हैं। साफ है कि बच्चे पैसों का उपयोग आभाषी दुनिया (सोशल साइट्स) में बने रहने के लिए ज्यादा कर रहे हैं एक्चुअल वर्ल्ड के लिए कम। विभाग के अधिकारियों को इससे क्या ?

 


 

निदेशालय से साझा में बड़े अरमानों से स्थानांतरित किये गए थे 7 आवासीय सेंटर

 

निदेशालय के 7 आवासीय सेंटरों को साझा में इस सोच के साथ स्थानांतरित किया गया था कि सरकारी प्रक्रिया के जंजाल से मुक्ति पाकर ये सेंटर जल्द ही सेंटर फॉर एक्सीलेंस बनेंगे। लेकिन यहां तो चौबे जी छब्बे बनने गए दुबे बनकर आए वाली कहावत चरितार्थ हो गई। निदेशालय में जो हक मिलता था उसपर भी सरकारी लालफीताशाही के कारण आफत आन पड़ी है। सेंटर फॉर एक्सीलेंस का सपना तो बेमानी है।