हमारा लक्ष्य, ओलंपिक गोल्ड का सपना देखने व दिखानेवाले सीसीएल के अफसरों ने फाइलों को ऐसा होल्ड किया कि झारखंड राज्य खेल प्रोत्साहन सोसायटी (JSSPS) के 438 कैडेट्स के लिए पिछले तीन माह के फूड स्टाइपेंड का पैसा “रिटायर्ड हर्ट” हो गया। बच्चे सुबह से शाम तक टैब पर मैसेज बाॅक्स दिन-रात खंगालते हैं कि शायद पैसे अकाउंट में आ गए हों लेकिन निराशा ही हाथ लगती है। अकादमी के संचालन का जिम्मा संभालनेवाले लोकल मैनेजमेंट कमिटी (LMC) के CEO विद्यार्थी से जब sportsjharkhand.com ने पूछा तो उन्होंने डंके की चोट पर बताया कि अक्टूबर से लेकर अप्रैल तक सभी कैडेट्स को फ़ूड स्टाइपेंड का भुगतान कर दिया गया है। जब हमने CEO को बताया कि फरवरी तक का ही भुगतान हुआ है तो उनके होश फाख्ता हो गए। उन्होंने कहा कि मैं अपने साथ के तमाम अफसरों से क्राॅस कंफर्म कर आपको तुरंत फोन करता हूं। खबर लिखे जाने तक फोन नहीं आया है और आने की संभावना भी नहीं है क्योंकि लगभग एक माह से भुगतान की फाइल सीइओ के टेबल पर धूल फांक रही है। दूसरी ओर रांची के एक थाने में सीएम के साथ अपनी तस्वीर का रौब दिखाने का असफल प्रयास करनेवाला एक बयानवीर 438 कैडेट्स के नाम पर अखबार की कतरनों पर किए गए झूठे प्रवचनों को फेसबूक पर डाल अपने सपनों को साकार करता है और कैडेट्स मैसेज बॉक्स में रोजाना अपने सपने को घुट-घुट कर टूटते हुए पाते हैं।
सफेद झूठ
विद्यार्थी, CEO LMC
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कैडेट्स को अब तक सिर्फ जनवरी व फरवरी माह के फूड स्टाइपेंड का हुआ भुगतान
LMC की ओर से 438 कैडेट्स में से 431 कैडेट्स को जनवरी व फरवरी माह के फूड स्टाइपेंड का भुगतान किया गया है। JSSPS की ओर से दोनों माह की स्टाइपेंड की कुल राशि 25 लाख 86 हजार रुपये 20 मार्च 2021 को बच्चों के एकाउंट में ट्रांसफर की गयी थी। बच्चों के अकाउंट में एक साथ छह-छह हजार रुपये ट्रांसफर हुए। इसके बाद से भुगतान की फाइल टेबल दर टेबल घूम रही है लेकिन भुगतान नहीं हो पाया है।
गवर्निंग काउंसिल ने अगस्त में दी थी हरी झंडी
वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर कैडेट्स का प्रशिक्षण बंद था ऐसे में अगस्त में JSSPS में नीतिगत मामलों में फैसला लेने के लिए अधिकृत सर्वोच्च संस्था गवर्निंग काउंसिल ने फैसला लिया था कि अक्टूबर माह से प्रति कैडेट्स 3000 रुपये प्रतिमाह फूड स्टाइपेंड के तौर पर दिए जाएं। जिससे की खिलाड़ी पौष्टिक भोजन कर सकें। पता हो कि कैडेट्स को पहले से ही स्टाइपेंड के तौर पर 500 रुपये प्रतिमाह दिए जाते रहे हैं।
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