sportsjharkhand.com टीम
रांची
झारखंड के 24 जिलों में खेल को आगे बढ़ाने के छद्म वायदे के साथ शनिवार को रांची में झारखंड ओलंपिक संघ (JOA) के दो-दो चुनाव हुए। दोनों चुनावों के एक बात समान है कि दोनों जगहों पर आदिवासी खेल प्रशासकों की घोर उपेक्षा की गई है। आदिवासियों के उत्थान के नाम पर बने झारखंड में ऐसे हालात अच्छे संकेत नहीं। आर के आंनद वाली JOA में दो पदाधिकारी सावित्री पूर्ती और जॉर्ज लकड़ा सहायक सचिव बने वो भी चुनाव जीतकर। जबकि यहीं 32 पदाधिकारी निर्विरोध निर्वाचित हुए थे, इनमें से एक भी आदिवासी नहीं थे। दूसरे गुट ने तो हद ही कर दी 28 सदस्यीय पदाधिकारियों की टीम में एक भी आदिवासी चेहरा नहीं। कुल मिलाकर देखें तो झारखंड के खेल प्रशासन में आदिवासियों की हालत चाकर के बराबर भी नही है। ऐसे में सवाल उठने तो लाज़िमी हैं।
आधी आबादी भी दरकिनार
चुनाव के पहले और बाद में आधी आबादी को भी वो प्रतिनिधित्व नही मिला जिसकी वो हकदार है। किसी भी विधा में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों का नाम देखिये आधी आबादी पुरुषों से काफी आगे है लेकिन मात्र एक महिला सावित्री पूर्ती को जगह दी गई है। वो भी खाली स्थान भरने के लिहाज से। 83 मतदाताओं में मात्र 2 महिला वो भी राष्ट्रीय खेल संघ से गैर मान्यताप्राप्त संघ के प्रतिनिधि के रूप में।
69 में से मात्र 2 आदिवासी पदाधिकारी
दोनों JOA मिलाकर 69 पदाधिकारी बनाये गए लेकिन इनमें से मात्र 2 ही आदिवासी हैं। उनमें से एक के खेल संघ को राष्ट्रीय खेल संघ से मान्यता भी नही मिली है। ऐसे में तार्किक रूप से एक ही आदिवासी पदाधिकारी JOA का सदस्य है।
ना तो वोटर बनाया, ना ही पदाधिकारी
JOA आनंद गुट ने 31 खेल संघों और 22 जिला ओलंपिक संघों को मान्यता दी है। इनमें से मात्र एक खेल संघ हैंडबॉल संघ के अध्यक्ष डॉ प्रदीप बलमुचू हैं जबकि 31 खेल संघों में मात्र दो हॉकी झारखंड में सावित्री पूर्ती, और झारखंड आईस हॉकी संघ के जॉर्ज लकड़ा महासचिव हैं। वहीं 22 ज़िला ओलंपिक संघों में से किसी भी ओलंपिक संघ में अध्यक्ष के पद पर आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व नही है।
आदिवासी खेल प्रशासकों को एक-एक कर किनारे लगाया गया
ऐसा नही कि झारखंड में आदिवासी खेल प्रशासकों की कमी रही। कई खेल प्रशासक काफी ऊंचे पदों तक पहुंचे लेकिन उन्हें किनारे लगा दिया गया। इनमें रामेश्वर उराँव, सिलवानुस डुंगडुंग, जयंत जयपाल सिंह, अमर बिरुली और बुधुआ उराँव का नाम प्रमुख रूप से शामिल है। जब-जब सत्ता पर काबिज खेल खेल प्रशासकों को आदिवासी नेतृत्व से चुनौती मिली उन्हें किनारे कर दिया गया।
…इसीलिए बना था आदिवासी खेल संघ
2003 में ऐसी ही परिस्थितियों के निर्माण के बाद आदिवासी बुद्धिजीवियों और अफसरों ने मिलकर आदिवासी खेल संघ नामक खेल संगठन बनाया था। जिसने मोरहाबादी के बिरसा मुंडा स्टेडियम ने 3 दिवसीय आदिवासी खेल महोत्सव प्रतियोगिता का आयोजन किया था। जिसमे एथलेटिक्स और तीरंदाज़ी की प्रतियोगिता विशेष रूप से शामिल थी। 7 से 9 जुलाई 2003 तक चली प्रतियोगिता में राज्य सरकार ने 3 लाख रुपये की सहायता भी दी थी।
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