आज किसी भी प्रतिष्ठित एवं लोकप्रिय समाचार पत्र पत्रिका में खेलकूद संबंधी समाचारों का होना अनिवार्य जैसा हो गया है. खेलकूद संबंधी समाचारों के बिना समाचार पत्र को अधूरा माना जाता है. देश के अनेक समाचार पत्रों में तो खेलकूद के समाचारों के लिए एक से अधिक पृष्ठ भी आवंटित रहा करते हैं. आज देश के बड़े से बड़े समाचार पत्र भी किसी महत्वपूर्ण खेल समाचार को अखबार के प्रथम पृष्ठ के लीड समाचार के तौर पर पेश करने से भी नहीं हिचकते, परंतु एक समय ऐसा भी था, जब ऐसा सोचने तक का दुःसाहस शायद ही कोई संपादक करता. वर्तमान झारखंड क्षेत्र में तो खेल पत्रकारिता की स्थिति और भी ज्यादा दयनीय थी.
वैसे तो झारखंड क्षेत्र में पत्रकारिता की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के अंत अंत तक हो चुकी थी, लेकिन यहां की खेल पत्रकारिता की उम्र बहुत अधिक नहीं है. तब से लेकर आज तक यहां दर्जनों पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होते रहे, जिनमें से कइयों को तो अकाल मृत्यु का सामना करना पड़ा, लेकिन पिछले जमाने के उन लगभग सभी स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में खेलकूद संबंधी समाचार उपेक्षित ही रहते. इसके कई कारण रहे होंगे. तत्कालीन संपादकों की राय में उन दिनों के रांची जैसे छोटे शहर और आसपास के पिछड़े इलाकों में खेल समाचारों के पाठक अधिक नहीं हुआ करते थे. दूसरी बात यह कि दुर्भाग्य से उन दिनों झारखंड क्षेत्र में हिंदी समाचार पत्रों का और वह भी खेल समाचारों का बहुत बड़ा पाठक वर्ग भी नहीं था. समाचार पत्रों के पाठकों का एक विशेष वर्ग तो हिंदी समाचार पत्र पढ़ने से भी कतराया करता था और मुख्यतः पटना, कोलकाता या दिल्ली से आनेवाले अखबारों पर निर्भर रहा करता था.
झारखंड की राजधानी रांची में विधिवत रूप से खेल पत्रकारिता की शुरुआत पिछली सदी के सत्तर के दशक में हुई थी. इसका श्रेय उन दिनों रांची के दो सर्वाधिक लोकप्रिय साप्ताहिक समाचार पत्रों – वर्ष 1963 से प्रकाशित होनेवाले “रांची एक्सप्रेस” (हिंदी) और वर्ष1958 से प्रकाशित होनेवाले “द रिपब्लिक”(अंग्रेजी) को जाता है. “द रिपब्लिक”, बाद में जिसका प्रकाशन “द न्यू रिपब्लिक”के नाम से होने लगा, ने तो वर्ष 1970 के जून महीने से ही खेलकूद समाचारों के लिए एक कॉलम ही निर्धारित कर दिया था, जबकि इसके कुछ ही दिनों बाद से “रांची एक्सप्रेस” ने भी संक्षिप्त रूप से कुछ खेलकूद समाचारों को अपने अखबार में जगह देना शुरू किया. इसके कुछ दिनों के उपरांत रांची के दो अन्य साप्ताहिक द सेंटिनल (अंग्रेजी) एवं रांची टाइम्स (हिंदी) भी कुछ समय तक अपने अपने समाचार पत्रों में खेलकूद संबंधी समाचारों को शामिल किया करते थे. रांची के उस समय के सर्वाधिक लोकप्रिय साप्ताहिक “रांची एक्सप्रेस” के साथ उन दिनों यह लाचारी रही होगी कि विस्तृत रूप से खेलकूद समाचारों को पढ़ने में अभिरुचि उसके एक बड़े पाठक वर्ग की उस समय तक नहीं बनी थी. बावजूद इसके बीच बीच में उसके अंकों में प्रसिद्ध खेल हस्तियों के संबंध में विस्तृत विवरण एवं उनका साक्षात्कार प्रकाशित किया जाता था.
उन दिनों संचार माध्यम आज की तरह विकसित नहीं था. टीवी, इंटरनेट आदि नहीं थे. समाचार हाथ से लिखे जाते या, टाइप राइटर से तैयार किये जाते थे. वह हैंड कंपोजिंग का जमाना था. उसमें भी काफी समय लग जाया करता था. बस, ट्रेनें आदि की संख्या भी कम थी. इस कारण शहर के बाहर अन्य जिलों में समाचार पत्र भेजने के लिए उनके संस्करण भी शाम के बाद जल्दी तैयार कर देने पड़ते थे. 1976 से “रांची एक्सप्रेस” को दैनिक किये जाने के बाद से अधिसंख्य स्थानीय अखबारों में खेल समाचारों को नियमित रूप से जगह मिलने लगी थी. परंतु अस्सी के दशक तक यहां के खेल पत्रकार हासिये में ही रहे. 1984 में रांची से “प्रभात खबर” दैनिक के शुरू होने के बाद से यहां के खेल पत्रकारों की स्थिति में कुछ सुधार आया. अखबार के दफ्तरों में उनकी भी खोज खबर ली जाने लगी. उन्हीं दिनों वाराणसी के दैनिक आज का रांची से भी प्रकाशन शुरू हुआ. परंतु स्थानीय खेल पत्रकारों की स्थिति में कोई खास अंतर नहीं आया. आम तौर पर यहां के अखबारों में खेल पत्रकारों को पूर्णकालिक नौकरी पर नहीं रखा जाता था. काफी समय तक वे पार्ट टाइमर के रूप में काम करते रहे. उन दिनों यहां आमतौर पर संबंधित लोगों में जागरुकता के अभाव के कारण खेल पत्रकारों को खिलाड़ियों एवं खेल संघों से अपेक्षित सहयोग भी नहीं मिला करता था. ऊपर से अपने आलेखों में उनकी कमियों या कार्यशैली की आलोचना किये जाने पर कभी कभी पत्रकारों को उनसे धमकियां भी मिला करती थी.
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद यहां से दैनिक हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, दैनिक जागरण, द पायोनियर, द टेलिग्राफ, दैनिक भास्कर, सन्मार्ग जैसे राष्ट्रीय स्तर के अखबारों के अलावा खबर मंत्र जैसे कई क्षेत्रीय अखबार भी प्रकाशित होने लगे और इसके साथ ही स्थानीय खेल पत्रकारिता व स्थानीय खेल पत्रकारों की स्थिति में भारी बदलाव आते गया. आज स्थिति यह है कि किसी भी समाचार संस्थान में खेल डेस्क का होना अनिवार्य माना जाता है.