sportsjharkhand.com टीम
सिमडेगा/रांची
झारखण्ड में खेल सामजिक व पारंपरिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। क्रिकेट को धर्म की संज्ञा देनेवालों को खेल के क्रिया-विशेषण और संज्ञा के अंतर को समझने के लिए झारखण्ड के ग्रामीण इलाकों का एक बार दौरा ज़रूर करना चाहिए। पैरों में चप्पल-जूते भले ही ना हों लेकिन खेल का जुनून और उसके प्रति प्रेम व समर्पण की निश्छल अविरल धारा जिस कदर झारखण्ड के ग्रामीण परिवेश में रच-बस गयी है, वो शायद ही आपको देश के किसी हिस्से में देखने को मिले। प्रेम और समर्पण के सामने अभाव भी दम तोड़ता नज़र आता है। ऐसे में खेल धर्म की आयामी परिभाषा खुद-ब-खुद बदल जायेगी।
झारखण्ड सरकार और CCL के संयुक्त तत्वावधान में चल रही खेल अकादमी (JSSPS) के लिए खिलाड़ियों की तलाश में ट्रायल का आयोजन सभी जिलों में किया जा रहा है। सिमडेगा में ट्रायल हो चुका है और 50 बच्चों का चयन आखिरी दौर की चयन प्रक्रिया के लिए हुआ है। ये तस्वीर (खबर के साथ लगी तस्वीर) उन्ही 50 में से 8 बच्चियों की है। खेल संसाधन मुहैया कराने की योजनाओं के मुंह पर कालिख पोतती ये तस्वीर एक सच्चाई भी चीख-चीख कर बयां कर रही है कि प्रतिभा संसाधनों की गुलाम नहीं होती।
16 से 20 मार्च तक करोड़ों-अरबों की लागत से बने होटवार स्थित स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में जब ये बच्चियां नंगे पांव या उधार के जूतों से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगी तो सपना सिर्फ एक होगा खेल के ज़रिये राज्य व देश का नाम रौशन करना। रांची पहुँच कर ये खिलाड़ी शहरी चकाचौंध में फंस अपने लक्ष्य से ना भटक जाएँ इसलिए नवोदित खिलाडियों के अभिभावक और खेल प्रशासक मनोज कोनबेगी उन्हें टिप्स देने के लिए दूरदराज इलाकों में अवस्थित उनके स्कूल तक पहुँच रहे हैं। रांची में खिलाड़ियों को क्या करना है और क्या नहीं ये बताने के लिए। निस्वार्थ भाव से खेल की सेवा में लगे रहने का इससे बेहतर नमूना देश के किसी हिस्से में शायद ही आपको देखने को मिले। यही है हमारा परिवेश, जय झारखण्ड !
sportsjharkhand.com इन बच्चियों और इनके जैसे सैकड़ों बच्चों और मनोज कोनबेगी जैसे खेल प्रशासकों को दिल से सलाम पेश करता है और सुनहरे भविष्य की कामना करता है।