sportsjharkhand.com टीम
रांची
जामताड़ा जिला में कई खेल संघों से जुड़े अंगद सिंह अपने कर्मों की वजह से आंख से अंधा नाम नयनसुख कहावत को चरितार्थ करते हुए दिख रहे हैं। अंगद 27 मई को रांची में रहते हुए दिल्ली प्रवास की बात 28 मई से ही क्यों कर रहे हैं ? अंगद ऐसा किसी डर के कारण कर रहे हैं या एक रणनीति के तहत ? सवाल का जवाब अंगद ही बेहतर तरीके से दे सकते हैं।
अंगद एक साथ दो-दो नाव पर सवारी करने का मन बना चुके थे। कबड्डी को लेकर संघ के स्तर पर आर आर मिश्रा से उनका टकराव जगजाहिर है। इसलिए जैसे ही पहला मौका मिला निकल पड़े रांची की ओर, लेकिन जब 28 मई को खबर सामने आई तो चौबे-छब्बे-दूबे की तर्ज़ पर एथलेटिक्स के हाथ से निकलने का खतरा नज़र आने लगा तो सुर-ताल बदलने लगे। दोनों हाथों में लड्डू रखने के चक्कर में अंगद एक्सपोज़ हो गए और संभावना यही है कि दोनों जगहों से देर-सवेर विदाई तय है।
अंगद ने दस्तावेजों को सही ठहराया था
27 मई की चुनावी हलचल के बाद 28 मई को समाचार पत्रों में पदाधिकारियों के नाम छपने के बाद पहली बार अंगद के पांव कांपते नज़र आये। उन्होंने व्हाट्सएप्प पर अपने कई मित्रों को बताया कि उन्हें बैठक की कोई जानकारी नही और ना ही इस बात कि जानकारी है कि उनका नाम पदाधिकारियों की लिस्ट में कैसे आ गया (व्हाट्सएप्प चैट का टेक्स्ट और स्क्रीनशॉट sportsjharkhand.com के पास मौजूद है)। इसके बाद हमने खबर पर काम करना शुरू किया तो 29 मई को रेलवे टिकट, 1 जून को सादे कागज पर कबूलनामा और 2 जून को होटल बिल और ब्रह्मर्षि सेवा संघ के लेटर पैड पर कबूलनामे का दस्तावेज़ मिला। sportsjharkhand.com ने अंगद से 2 मई की सुबह बात की तो उन्होंने दस्तावेजों को सही बताते हुए 27 को दिल्ली में रहने की बात बताई।