sportsjharkhand.com टीम
रांची
दक्षिण पूर्वी रेलवे में कार्यरत और इस वर्ष ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित पूर्व भारतीय हाॅकी टीम की कप्तान सुमराय टेटे के सम्मान के लिए डीआरएम कार्यालय पूरे 28 दिनों बाद जागा है। सुमराय टेटे को राष्ट्रीय खेल दिवस के दिन माननीय राष्ट्रपति महोदय ने ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया था। वे यह सम्मान पानेवाली दक्षिण पूर्वी रेलवे में कार्यरत पहली महिला हैं। दिल्ली से ही सुमराय दक्षिण पूर्वी रेलवे महिला हाॅकी टीम के मैनेजर की भूमिका निभाने के लिए बेंगलुरू चली गयी थीं। प्रतियोगिता समाप्ति के बाद सुमराय 11 सितंबर को रांची लौट आयीं। रांची लौटने के 14 दिनों बाद डीआरएम कार्यालय और साउथ इस्टर्न रेलवे स्पोट्र्स एसोसिएशन (SERSA) की गहरी निंद्रा से जागा है। डीआरएम आॅफिस में दोपहर 12 बजे आयोजित कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट से नाफरमानी और कर्तव्यहीनता के लिए डांट-फटकार खाकर लौटे बीसीसीआइ के एक्टिंग सेक्रेटरी अमिताभ चौधरी जोनल रेलवे प्रेसिडेंट सह मुख्य यांत्रिक अभियंता जेके सिन्हा, डीआरएम वीके गुप्ता, एडीआरएम विजय कुमार की उपस्थिति में सुमराय टेटे का सम्मानित करेंगे। 28 दिनों बाद सम्मान करने के पीछे कई कारण और कारक हो सकते हैं। जवाब दक्षिण पूर्वी रेलवे और SERSA से जुड़े पदाधिकारी ही बेहतर दे सकते हैं।
एक पंथ, दर्जनों पास की रणनीति तो नहीं !
जमाना मार्केटिंग का है और इसमें कई लोग पारंगत हैं। sportsjharkhand.com को मिली जानकारी के अनुसार सुमराय टेटे को डीआरएम कार्यालय में सम्मानित करने के पीछे एक पंथ, दर्जनों पास की रणनीति काम कर रही है। सेरसा से जुड़े एक पदाधिकारी ने JSCA में अपना नंबर और कद बढ़ाने के लिए ये पूरा कार्यक्रम बनाया है। पता हो कि 7 अक्टूबर को भारत और आस्ट्रेलिया के बीच JSCA स्टेडियम में टी-20 मैच होना है।
स्वागत के लिए हटिया स्टेशन पर एक भी रेलवेकर्मी नहीं थे मौजूद
Encouragement Delayed, Encouragement Denied. अंग्रेजी की एक पुरानी कहावत के तर्ज पर गढ़े इन शब्दों का मर्म एक खिलाड़ी और प्रशिक्षक ही अच्छी तरह से समझता है। ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद जब पहली बार सुमराय टेटे 11 सितंबर को झारखंड लौटीं तो हटिया स्टेशन पर स्वागत के लिए उनके साथ काम करनेवाले एक भी रेलवेकर्मी मौजूद नहीं था। जबकि हटिया स्टेशन से डीआरएम कार्यालय की दूरी मात्र 50 मीटर की है। और अब दो सप्ताह बाद सम्मान की औपचारिकता के बहाने अखबार में छपने की रणनीति को समझना बहुत कठिन नहीं है।