sportsjharkhand.com टीम
रांची
खबर का शीर्षक यदि आपको कांके के रिनपास या सीआईपी की याद दिला रहा हो तो माफ़ कीजियेगा ! लेकिन रिनपास और सीआईपी नहीं हम बात कर रहे हैं झारखण्ड सरकार के पर्यटन, कला-संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग की। जी हां वही खेल विभाग जो 34वें राष्ट्रीय खेलों के घोटालों की तपीश में आज भी जल रहा है, और सबसे दुःख की बात ये कि इसी तपीश में घी डालनेवाले और हाथ सेंकनेवालों की कोई कमी नहीं।
खेल आयोजन में संभावित भ्रष्टाचार की आशंका को देखते हुए राज्य सरकार ने मई-जून में आयोजित होने वाले एशियाई एथलेटिक्स से खुद को अलग कर लिया था। इस गलती को सुधारे एक माह भी नहीं बीते थे कि एशियाई हॉकी चैंपियंस ट्रॉफी (महिला एवं पुरुष) आयोजन की फाइल तैयार हो गयी और बढ़ने लगी। sportsjharkhand.com को मिली जानकारी के अनुसार मुख्य सचिव स्तर के एक वरीष्ठ आईएएस अधिकारी के मौखिक आदेश के बाद फाइल को पांव लगे और वो सरकारी बाबुओं के टेबल पर सरपट दौड़ने लगी।
क्या है एशियाई हॉकी चैंपियनशिप ?
2010 में महिला और 2011 में पुरुष वर्ग में यह प्रतियोगिता शुरू हुई। महिला वर्ग में 5 और पुरुष वर्ग में 7 एशिया की टॉप टीमें भाग लेती हैं। भारत 2016 में सिंगापूर में आयोजित महिला एवं मलेशिया में आयोजित पुरुष वर्ग का विजेता रहा है। पुरुष वर्ग में 2011, 2012, 2013 और 2016 में जबकि महिला वर्ग में 2010, 2011, 2013 और 2016 में प्रतियोगिता का आयोजन हो चुका है। हॉकी एशिया ने अब प्रत्येक वर्ष इसके आयोजन का फैसला लिया है।
आयोजन पर इतना ज़ोर क्यों ?
खेल आयोजनों पर इतना ज़ोर आखिर क्यों ? इसका जवाब है आयोजन से जुड़े हर काम पर मिलनेवाला कमिशन ! होटल की लिस्ट, खाने का मेनू और सर्विस प्रोवाइडर, तकनीकी पदाधिकारियों की लिस्ट, वाहन, खेल के लिए ज़रूरी तकनीकी सामान के भाड़े हर जगह आयोजन से पहले ही बिल कितने का बनेगा और पेमेंट क्या होगा तय हो जाता है। जहाँ बात नहीं बनती उसे बाहर कर दिया जाता है। होटल में 60:40, खाने में 80:20, वाहन में 70:30 और तकनीकी सामान में 60:40 का कमिशन तय है। इसके अलावा बाहर से आने वाले तकनीकी पदाधिकारियों को पूरा पैसा मिलता है जबकि लोकल स्तर पर रखे गए पदाधिकारियों को मनमर्ज़ी पैसा देकर चुप करा दिया जाता है। जब चारों ओर पिंक गांधी दिख रहे हों तो आयोजन को ना कैसे करें !
जिसपर विभाग केस करने जा रहा, उसी को आयोजन का जिम्मा देने की तैयारी !
34वें राष्ट्रीय खेलों में सरकार को गलत जानकारी देकर प्रशिक्षक के रूप में ज्यादा पैसे लेने के आरोप में एक ओर विभाग केस करने की तैयारी में हैं। वहीँ दूसरी ओर उसी आरोपी को आयोजन का ज़िम्मा देने की तैयारी भी की जा रही है।
राजनेता-IAS-IPS अधिकारियों की शह पर खेल प्रशासकों ने बिछाया जाल
खेल आयोजन से किसका फायदा होता है ? खेल का ? खिलाड़ी का ? प्रशिक्षकों का या खेल प्रशासकों का ? यदि आप खेल में रूचि रखते हैं तो जवाब तलाशने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। स्कूटर-मोटर साइकिल में चलनेवाले खेल प्रशासक-राजनेता-अधिकारियों के गठजोड़ के कारण दर्ज़नों आयोजन हुए और प्रशासक खिलाड़ियों का हक़ मार कर शक्तिशाली बन गए और खिलाड़ी दीन-हीन।
ऐसे आयोजनों के बाद खिलाड़ी चौमिन की दूकान पर और खेल प्रशासक हवा में नज़र आता है
राज्य निर्माण के बाद झारखण्ड में दर्ज़नों राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन हुए। इन आयोजनों के बाद कितने खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय पटल पर उभर कर सामने आये। सच्चाई ये है कि 5 हज़ार की नौकरी करनेवाला विवाहित खेल प्रशासक अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ हवाई जहाज पर घुमता है और खिलाड़ी चौमिन की दूकान खोलने पर मजबूर। इन सबके बावजूद नीत नए बहाने के साथ आयोजन की पृष्ठभूमि तैयार होती रहती है।